आदिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ PDF

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आदिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ PDF Summary

नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप आदिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ PDF प्राप्त कर सकते हैं । आदिकाल को वीरगाथा काल के नाम से भी जाना गया है, यद्यपि अनेक विद्वानों ने इस काल को कई नामों से सम्बोधित किया है, यथा-सिद्ध सामन्त युग, चारण काल, आधार काल, नवजागरण काल, संक्रमण काल और संयोजन काल आदि।
यदि आप एक छात्र हैं तथा हिन्दी के विध्यार्थी हैं और अपनी परीक्षा में अच्छे अंकों से उत्तरीर्ण होना चाहते हैं तों आपके लिए यह लेख अत्यंत सहायक सिद्ध होगा । हिन्दी में आदिकाल का बहुत अधिक महत्व है तथा इसकी प्रवृत्तियाँ के संबंध में समान्यतः परीक्षा में प्रश्न पूछा जाता है जिसकी तैयारी आप कर सकते हैं ।

आदिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ PDF / Aadikal Ki Pramukh Pravritiyan PDF

  • ऐतिहासिक काव्यों की प्रधानता : ऐतिहासिक व्यक्तियों के आधार पर चरित काव्य लिखने का चलन हो गया था । जैसे – पृथ्वीराज रासो, परमाल रासो, कीर्तिलता आदि । यद्यपि इनमें प्रामाणिकता का अभाव है ।
  • लौकिक रस की रचनाएँ : लौकिक-रस से सजी-संवरी रचनाएँ लिखने की प्रवृत्ति रही ; जैसे – संदेश-रासक, विद्यापति पदावली, कीर्तिपताका आदि ।
  • रुक्ष और उपदेशात्मक साहित्य : बौद्ध ,जैन, सिद्ध और नाथ साहित्य में उपदेशात्मकता की प्रवृत्ति है, इनके साहित्य में रुक्षता है । हठयोग के प्रचार वाली रचनाएँ लिखने की प्रवृत्ति इनमें अधिक रही ।
  • उच्च कोटि का धार्मिक साहित्य : बहुत सी धार्मिक रचनाओं में उच्चकोटि के साहित्य के दर्शन होते हैं ; जैसे – परमात्म प्रकाश, भविसयत्त-कहा, पउम चरिउ आदि ।
  • फुटकर साहित्य : अमीर खुसरो की पहेलियाँ, मुकरी और दो सखुन जैसी फुटकर (विविध) रचनाएँ भी इस काल में रची जा रही थी ।
  • युद्धों का यथार्थ चित्रण : वीरगाथात्मक साहित्य में युद्धों का सजीव और ह्रदयग्राही चित्रण हुआ है । कर्कश और ओजपूर्ण पदावली शस्त्रों की झंकार सुना देती है ।
  • आश्रयदाता राजाओं की प्रशंसा, उनके युद्ध, विवाह आदि का विस्तृत वर्णन हुआ है, लेकिन राष्ट्रीयता का अभाव रहा ।
  • पारस्परिक वैमनस्य का प्रमुख कारण स्त्रियाँ थी । उनके विवाह एवं प्रेम प्रसंगों की कल्पना तथा विलास-प्रदर्शन में श्रृंगार का श्रेष्ठ वर्णन और उन्हें वीर रस के आलंबन-रूप में ग्रहण करना इस युग की विशेषता थी । स्पष्टत: वीर रस और श्रृंगार का अद्भुत समन्वय दिखाई देता है ।
  • चरित नायकों की वीर-गाथाओं का अतिश्योक्तिपूर्ण वर्णन करने में ऐतिहासिकता नगण्य और कल्पना का आधिक्य दिखाई देता है ।
  • चीजों के बारे में विस्तारपूर्वक वर्णन होने की वजह से वर्णनात्मकता का आधिक्य है ।
  • प्रबंध (महा काव्य और खंडकावय) एवं मुक्तक दोनों प्रकार का काव्य लिखा गया । खुमान रासो, पृथ्वीराज रासो प्रबंध काव्य के श्रेष्ठ उदाहरण हैं । बीसलदेव रासो मुक्तक काव्य का श्रेष्ठ उदाहरण है ।
  • रासो ग्रंथों की प्रधानता रही ।
  • अधिकतर रचनाएँ संदिग्ध हैं ।
  • इस युग की भाषा में निम्न प्रवृत्तियाँ दिखाई देती हैं :-

राजस्थानी मिश्रित अपभ्रंश (डिंगल) : वीरगाथात्मक रासक ग्रंथों में इस भाषा का स्वरूप देखने को मिलता है ।
मैथिली मिश्रित अपभ्रंश : इस भाषा का स्वरूप विद्यापति की पदावली और कीर्तिलता में देखने को मिलता है ।
खड़ीबोली मिश्रित देशभाषा : इसका सुंदर प्रयोग अमीर खुसरो की पहेलियों एवं मुकरियों में हुआ है ।

  • इस युग की कृतियों में प्राय: सभी अलंकारों का समावेश मिलता है । पर प्रमुख रूप से उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा ,अतिश्योक्तिअलंकारों का प्रयोग हुआ ।
  • दोहा,तोटक,तोमर, गाथा, रोमा-छप्पय आदि छंदों का प्रयोग बहुतायत हुआ है ।
  • इस युग में तीन रसों का निर्वाह हुआ है : वीर रस (चारण काव्य ), श्रृंगार रस (चारण काव्य तथा विद्यापति की पदावली और कीर्तिलता में) तथा शांत रस ( धार्मिक साहित्य में) ।

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